- प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)
NCERT MCQ - यदि किसी 50 Hz के ac परिपथ में वर्ग माध्य मूल धारा 5 A हो, तो इसका मान शून्य होने के का मान होगा- 1/300 सेकण्ड के पश्चात् धारा
(a) 5√2) A
(b) 5sqrt(3/2) * A
(c) 5/6 * A
(d) 5/(sqrt(2) A
- एक प्रत्यावर्ती धारा जनित्र में एक आन्तरिक प्रतिरोध R_{g} तथा आन्तरिक प्रतिघात है। इसे प्रतिरोध R_{g} एवं प्रतिघात X_{g} X_{L} रखने वाले किसी निष्क्रिय लोड (Passive load) को विद्युत आपूर्ति हेतु प्रयुक्त किया जाता है। जनित्र से लोड के लिए अधिकतम विद्युत आपूर्ति करने के लिए X_{L} ? मान निम्न में से किसके समान होगा?
(a) शून्य
(b) X_{g}
(c) – X_{s}
(d) R_{g}
- जब एक वोल्टता मापन युक्ति को ac मुख्य प्रणाली से जोड़ा जाता है, तो मापी, स्थायी निवेशी वोल्टता 220 V दर्शाता है। इसका अर्थ है-
(a) निवेशी वोल्टता, ac वोल्टता नहीं हो सकती है, किन्तु डी.सी. वोल्टता हो सकती है।
(b) अधिकतम निवेशी वोल्टता 220 V होती है।
(c) मापी V नहीं पढ़ता है किन्तु < V2 > पढ़ता है तथा उसे sqrt < V ^ 2 > पढ़ने के लिए अंशशोधित (Calibnated) किया जाता है।
(d) मापी का संकेतक कुछ यांत्रिकी दोष के कारण रुका हुआ (Stuck) रहता है।
- एक जनित्र से किसी LCR श्रेणी में अनुनादी आवृत्ति को कम करने के लिए-
(a) जनित्र की आवृत्ति कम होनी चाहिए।
(b) अन्य संधारित्र को पहले में पार्श्वक्रम में जोड़ना चाहिए।
(c) प्रेरक के लोहे की क्रोड को हटाना चाहिए।
(d) संधारित्र में परावैद्युत को हटाना चाहिए।
- निम्न में से कौन-से संयोजन को संचार के लिए प्रयुक्त एक LCR परिपथ को अच्छे से संचालित करने के लिए चुनना चाहिए?
(a) R = 20Omega L = 1.5 H, C = 35mu*F
(b) R = 25Omega L = 2.5 H, C = 45mu*F
(c) R = 15Omega L = 3.5H C = 30mu*F
(d) R = 25Omega L = 1.5F , C = 45mu*F
- प्रतिघात 12 के एक प्रेरक एवं प्रतिरोधक 22 को एक 6 V (rms) ac स्रोत के टर्मिनलों से श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। परिपथ में अपव्यय हुई शक्ति होगी-
(a) 8 W
-(b) 12 W
(c) 14.4 W
(d) 18 W
- अपचयी ट्रांसफॉर्मर के निर्गत को तब 24 V मापा जाता है जब उसे 12 वाट के प्रकाश बल्ब से जोड़ा जाता है। शिखर धारा का मान होगा-
(a) 1/(sqrt(2)) * A
(b) sqrt(2) * A
(c) 2 A
(d) 2sqrt(2) * A
PYQ VVI MCQs
- एक श्रेणी LCR परिपथ में 5.0 हेनरी का प्रेरक, 80 माइक्रो फैराडे का धारित्र तथा 40 ओम का प्रतिरोधक 230 वोल्ट के परिवर्तनीय आवृत्ति के प्रत्यावर्ती स्त्रोत से जुड़ा है। अनुनाद कोणीय आवृत्ति पर शक्ति की आधी शक्ति स्थानान्तरित करने वाले स्रोत की कोणीय आवृत्तियाँ होगी :
(a) 50 रेडियन/से., 25 रेडियन/से.
(b) 46 रेडियन/से., 54 रेडियन/से.
(c) 42 रेडियन/से., 58 रेडियन/से.
(d) 25 रेडियन/से., 75 रेडियन/से.
- 20 mH का कोई प्रेरक, 100 mu*F का कोई संधारित्र तथा 50 Ω कोई प्रतिरोधक, वि.वा. बल (emf), V = 10 sin 314 के किसी स्त्रोत से श्रेणी में संयोजित है। इस परिपथ में शक्ति क्षय है
(a) 2.74 W
(b) 0.43 W
(c) 0.79 W
(d) 1.13 W
- 100 2 का एक प्रतिरोध तथा 100 प्रतिघात का एक संधारित्र, किसी 220 V के स्रोत से श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। संधारित्र के 50% आवेशित होने पर विस्थापन धारा का शिखर मान होगा:
(a) 4.4 A
(b) 11sqrt(2) * A
(c) 2.2 A
(d) 11 A
- कोई लघु सिग्नल वोल्टता V(t) = V_{0} sin ot किसी आदर्श संधारित्र C के सिरों पर अनुप्रयुक्त गयी है:
(a) धारा I(t) वोल्टता V(t) की कला में है।
(b) धारा I(t) वोल्टता nabla (t) से 180 deg अग्र है।
(c) धारा I(t) वोल्टता V(t) से 90 deg पश्च है।
(d) एक पूर्ण चक्र में संधारित्र C वोल्टता स्त्रोत से कोई ऊर्जा उपभोग नहीं करता।
- एक श्रेणी R-C परिपथ किसी प्रत्यावर्ती वोल्टता के स्रोत से जुड़ा है। दो स्थितियों (i) तथा (ii) पर विचार कीजिए:
(i) जब, संधारित्र वायु संपूरित (भरा) है।
(ii) जब, संधारित्र माइका संपूरित है।
इस परिपथ में प्रतिरोधक से प्रवाहित विद्युत धारा । है तथा संध रित्र के सिरों के बीच विभवान्तर है, तोः
(a) V_{a} > V_{b}
(c) V_{a} = V_{b}
(b) i_{a} > i_{b}
(d) V_{a} < V_{b}
- एक कुंडली का स्व-प्रेरकत्व L है। यह श्रेणी क्रम में एक विद्युत बल्ब B तथा एक ac स्रोत से जुड़ी है। इस बल्ब के प्रकाश की दीप्ति (तीव्रता) कम हो जाएगी, जबः
(a) ac स्त्रोत की आवृत्ति कम हो जाए।
(b) कुंडली में फेरों की संख्या कम हो जाए।
(c) इस परिपथ में एक संधारित्र प्रतिघात X_{C} = X_{L} जोड़ दिया जाए।
(d) कुंडली में लोहे की एक छड़ डाल दी जाए।
- एक a.c. वोल्टता को श्रेणीक्रम में जुड़े एक प्रतिरोधक R और प्रेरक L पर अनुप्रयुक्त किया गया है। यदि R और प्रेरकीय प्रतिघात में प्रत्येक का मान 32 हो, तो परिपथ में अनुप्रयुक्त वोल्टता और विद्युत धारा के बीच कलान्तर होगाः
(a) pi / 6
(b) pi / 4
(c) pi / 2
(d) शून्य
- एक ट्रांसफॉर्मर के प्राथमिक और द्वितीयक कुंडलियों में फेरों की संख्याएँ क्रमानुसार 50 और 1500 है। प्राथमिक कुंडली से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स phi = phi_{0} + 4t जहाँ के वेबर में तथा समय सेकण्ड में और द्वितीयक कुंडली से प्राप्त वोल्टता होगीः द्वारा व्यक्त होता है Phi_{0} एक नियतांक है।
(a) 30 वोल्ट
(b) 90 वोल्ट
(c) 120 वोल्ट
(d) 220 वोल्ट
- एक संधारित्र की धारिता और प्रतिघात X है यदि धारिता व आवृत्ति दुगुनी कर दी जाए, तो नया प्रतिघात होगाः
(a) 4X
(b) X/2
(c) X/4
(d) 2X